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He fell asleep because we could sleep peacefully.It was an Indian soldier who got martyred today.Jai HindMilitaryThere are lights in our Diwali because someone is standing on the border in the dark.Jai Hindwhat did a soldier lose

हम चैन से सो पाए इसलिए ही वो सो गया, वो भारतीय फौजी ही था जो आज शहीद हो गया. जय हिन्द Army  हमारी दिवाली में रोशनी इसलिए हैं क्योंकि सरहद पर अँधेरे में कोई खड़ा हैं. जय हिन्द एक सैनिक ने क्या खूब कहा है. किसी गजरे की खुशबु को महकता छोड़ आया हूँ, मेरी नन्ही सी चिड़िया को चहकता छोड़ आया हूँ, मुझे छाती से अपनी तू लगा लेना ऐ भारत माँ, मैं अपनी माँ की बाहों को तरसता छोड़ आया हूँ। जय हिन्द जहाँ हम और तुम हिन्दू-मुसलमान के फर्क में लड़ रहे हैं, कुछ लोग हम दोनों के खातिर सरहद की बर्फ में मर रहे हैं. नींद उड़ गया यह सोच कर, हमने क्या किया देश के लिए, आज फिर सरहद पर बहा हैं खून मेरी नींद के लिए. जय हिन्द जहर पिलाकर मजहब का, इन कश्मीरी परवानों को, भय और लालच दिखलाकर तुम भेज रहे नादानों को, खुले प्रशिक्षण, खुले शस्त्र है खुली हुई शैतानी है, सारी दुनिया जान चुकी ये हरकत पाकिस्तानी है, जय हिन्द फ़ौजी की मौत पर परिवार को दुःख कम और गर्व ज्यादा होता हैं, ऐसे सपूतो को जन्म देकर माँ का कोख भी धन्य हो जाता हैं. जिसकी वजह से पूरा हिन्दुस्तान चैन से सोता हैं, कड़ी ठंड, गर्मी और बरसात में अपना धैर्य न खोता ह...

#कामिका #एकादशी_की_ #व्रत_कथा By वनिता कासनियां पंजाब🌹🙏🌹 #जयश्री_राधे_राधे 🌹🙏🌹पौराणिक काल में एक दिन धर्मराज युधिष्टिर ने श्रीकृष्ण के समक्ष कामिका एकादशी के महात्म्य को विस्तारपूर्वक सुनाने का आग्रह किया। #धर्मराज युधिष्टिर ने श्रीकृष्ण से कहा कि हे प्रभु, मैंने आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी का महात्म्य तो सुन लिया, अब आप कृपा करके, मुझे सावन माह से #कृष्ण #पक्ष में आने वाली कामिका एकादशी की कथा विस्तारपूर्वक सुनाएं।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रमयुधिष्टिर जी का यह #आग्रह सुनकर भगवान श्रीकृष्ण बोले, "एक बार इस एकादशी की पावन कथा को भीष्म पितामह ने लोकहित के लिये नारदजी से कहा था।” एक समय नारदजी ने कहा - ‘हे पितामह! आज मेरी श्रावण के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनने की इच्छा है, अतः आप इस एकादशी की व्रत कथा विधान सहित सुनाएं।’नारदजी की इच्छा को सुन पितामह भीष्म ने कहा - 'हे नारदजी! आपका प्रस्ताव अत्यंत सुंदर है, मैं आपको यह कथा सुनाता हूँ, आप बहुत ध्यानपूर्वक इसका श्रवण कीजिए- श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम कामिका है।कामिका एकादशी के उपवास में शंख, चक्र, गदाधारी भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। जो मनुष्य इस एकादशी पर #धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उन्हें गंगा स्नान के फल से भी उत्तम फल की प्राप्ति होती है।सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण में केदार और कुरुक्षेत्र में स्नान करने से जिस पुण्य की प्राप्ति होती है, वह पुण्य कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करने से प्राप्त हो जाता है। भगवान विष्णु की श्रावण माह में भक्तिपूर्वक पूजा करने का फल समुद्र और वन सहित पृथ्वी दान करने के फल से भी ज्यादा होता है।संसार में भगवान की पूजा का फल सबसे ज्यादा है, अतः भक्तिपूर्वक भगवान की पूजा न बन सके तो श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की कामिका एकादशी का उपवास करना चाहिए। आभूषणों से युक्त बछड़ा सहित गौदान करने से जो फल प्राप्त होता है, वह फल कामिका एकादशी के उपवास से मिल जाता है।इस व्रत को करने तथा श्रीहरि की पूजा से गंधर्वों एवं नागों सहित सभी देवी देवताओं की पूजा हो जाती है। यह व्रत मनुष्यों के पितरों के पापों को धो देता है। इस व्रत के प्रभाव से स्वर्ग की प्राप्ति होती है तथा उसके पित्र भी स्वर्ग में अमृतपान करते हैं।संसार सागर तथा पापों में फँसे हुए मनुष्यों को इनसे मुक्ति के लिए कामिका एकादशी का व्रत करना चाहिये। कामिका एकादशी के उपवास से भी पाप नष्ट हो जाते हैं।जो मनुष्य इस दिन तुलसीदल से भक्तिपूर्वक भगवान विष्णु का पूजन करते हैं, वे इस संसार सागर में रहते हुए भी इस प्रकार अलग रहते हैं, जिस प्रकार कमल पुष्प जल में रहता हुआ भी जल से अलग रहता है।जो मनुष्य प्रभु का तुलसीदल से पूजन करते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। हे नारदजी! मैं भगवान की अति प्रिय श्री तुलसीजी को प्रणाम करता हूँ। तुलसीजी के दर्शन मात्र से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और शरीर के स्पर्श मात्र से मनुष्य पवित्र हो जाता है।तो इस प्रकार श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर जी को विस्तार पूर्वक कामिका एकादशी के महात्म्य के बारे में बताया। आप इस व्रत के दौरान इस कथा का पाठ करके या सुनकर पुण्य के भागीदार बन जाते हैं।

#कामिका #एकादशी_की_  #व्रत_कथा   By वनिता कासनियां पंजाब 🌹🙏🌹 #जयश्री_राधे_राधे 🌹🙏🌹 पौराणिक काल में एक दिन धर्मराज युधिष्टिर ने श्रीकृष्ण के समक्ष कामिका एकादशी के महात्म्य को विस्तारपूर्वक सुनाने का आग्रह किया। #धर्मराज युधिष्टिर ने श्रीकृष्ण से कहा कि हे प्रभु, मैंने आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी का महात्म्य तो सुन लिया, अब आप कृपा करके, मुझे सावन माह से #कृष्ण #पक्ष में आने वाली कामिका एकादशी की कथा विस्तारपूर्वक सुनाएं। बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम युधिष्टिर जी का यह #आग्रह सुनकर भगवान श्रीकृष्ण बोले, "एक बार इस एकादशी की पावन कथा को भीष्म पितामह ने लोकहित के लिये नारदजी से कहा था।” एक समय नारदजी ने कहा - ‘हे पितामह! आज मेरी श्रावण के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनने की इच्छा है, अतः आप इस एकादशी की व्रत कथा विधान सहित सुनाएं।’ नारदजी की इच्छा को सुन पितामह भीष्म ने कहा - 'हे नारदजी! आपका प्रस्ताव अत्यंत सुंदर है, मैं आपको यह कथा सुनाता हूँ, आप बहुत ध्यानपूर्वक इसका श्रवण कीजिए- श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम कामिका है। कामिका ए...

🙏 मां की ममता 🙏 By वनिता कासनियां पंजाब* ठाकुर जी का रुला देने वाला प्रसंग* *नंद बाबा चुपचाप रथ पर कान्हा के वस्त्राभ ूषणों की गठरी रख रहे थे। दूर ओसारे में मूर्ति की तरह शीश झुका कर खड़ी यशोदा को देख कर कहा- दुखी क्यों हो यशोदा, दूसरे की बस्तु पर अपना क्या अधिकार?**यशोदा ने शीश उठा कर देखा नंद बाबा की ओर, उनकी आंखों में जल भर आया था। नंद निकट चले आये। यशोदा ने भारी स्वर से कहा- तो क्या कान्हा पर हमारा कोई अधिकार नहीं? ग्यारह वर्षों तक हम असत्य से ही लिपट कर जीते रहे?**नंद ने कहा- अधिकार क्यों नहीं, कन्हैया कहीं भी रहे, पर रहेगा तो हमारा ही लल्ला न! पर उसपर हमसे ज्यादा देवकी वसुदेव का अधिकार है, और उन्हें अभी कन्हैया की आवश्यकता भी है।**यशोदा ने फिर कहा- तो क्या मेरे ममत्व का कोई मोल नहीं?**नंद बाबा ने थके हुए स्वर में कहा- ममत्व का तो सचमुच कोई मोल नहीं होता यशोदा। पर देखो तो, कान्हा ने इन ग्यारह वर्षों में हमें क्या नहीं दिया है।**उम्र के उत्तरार्ध में जब हमने संतान की आशा छोड़ दी थी, तब वह हमारे आंगन में आया। तुम्हें नहीं लगता कि इन ग्यारह वर्षों में हमने जैसा सुखी जीवन जिया है, वैसा कभी नहीं जी सके थे।**दूसरे की वस्तु से और कितनी आशा करती हो यशोदा, एक न एक दिन तो वह अपनी बस्तु मांगेगा ही न! कान्हा को जाने दो यशोदा।**यशोदा से अब खड़ा नहीं हुआ जा रहा था, वे वहीं धरती पर बैठ गयी, कहा- आप मुझसे क्या त्यागने के लिए कह रहे हैं, यह आप नहीं समझ रहे।**नंद बाबा की आंखे भी भीग गयी थीं। उन्होंने हारे हुए स्वर में कहा- तुम देवकी को क्या दे रही हो यह मुझसे अधिक कौन समझ सकता है यशोदा! आने वाले असंख्य युगों में किसी के पास तुम्हारे जैसा दूसरा उदाहरण नहीं होगा। यह जगत सदैव तुम्हारे त्याग के आगे नतमस्तक रहेगा।**यशोदा आँचल से मुह ढांप कर घर मे जानें लगीं तो नंद बाबा ने कहा- अब कन्हैया तो भेज दो यशोदा, देर हो रही है।**यशोदा ने आँचल को मुह पर और तेजी से दबा लिया, और अस्पस्ट स्वर में कहा- एक बार उसे खिला तो लेने दीजिये, अब तो जा रहा है। कौन जाने फिर...**नंद चुप हो गए।**यशोदा माखन की पूरी मटकी ले कर ही बैठी थीं, और भावावेश में कन्हैया की ओर एकटक देखते हुए उसी से निकाल निकाल कर खिला रही थी। कन्हैया ने कहा- एक बात पूछूं मइया?**यशोदा ने जैसे आवेश में ही कहा- पूछो लल्ला।**तुम तो रोज मुझे माखन खाने पर डांटती थी मइया, फिर आज अपने ही हाथों क्यों खिला रही हो?**यशोदा ने उत्तर देना चाहा पर मुह से स्वर न फुट सके। वह चुपचाप खिलाती रही। कान्हा ने पूछा- क्या सोच रही हो मइया?**यशोदा ने अपने अश्रुओं को रोक कर कहा- सोच रही हूँ कि तुम चले जाओगे तो मेरी गैया कौन चरायेगा।**कान्हा ने कहा- तनिक मेरी सोचो मइया, वहां मुझे इस तरह माखन कौन खिलायेगा? मुझसे तो माखन छिन ही जाएगा मइया।**यशोदा ने कान्हा को चूम कर कहा- नहीं लल्ला, वहां तुम्हे देवकी रोज माखन खिलाएगी।**कन्हैया ने फिर कहा- पर तुम्हारी तरह प्रेम कौन करेगा मइया?**अबकी यशोदा कृष्ण को स्वयं से लिपटा कर फफक पड़ी। मन ही मन कहा- यशोदा की तरह प्रेम तो सचमुच कोई नहीं कर सकेगा लल्ला, पर शायद इस प्रेम की आयु इतनी ही थी।**कृष्ण को रथ पर बैठा कर अक्रूर के संग नंद बाबा चले तो यशोदा ने कहा- तनिक सुनिए न, आपसे देवकी तो मिलेगी न? उससे कह दीजियेगा, लल्ला तनिक नटखट है पर कभी मारेगी नहीं।**नंद बाबा ने मुह घुमा लिया। यशोदा ने फिर कहा- कहियेगा कि मैंने लल्ला को कभी दूभ से भी नहीं छुआ, हमेशा हृदय से ही लगा कर रखा है।**नंद बाबा ने रथ को हांक दिया। यशोदा ने पीछे से कहा- कह दीजियेगा कि लल्ला को माखन प्रिय है, उसको ताजा माखन खिलाती रहेगी। बासी माखन में कीड़े पड़ जाते हैं।**नंद बाबा की आंखे फिर भर रही थीं, उन्होंने घोड़े को तेज किया। यशोदा ने तनिक तेज स्वर में फिर कहा- कहियेगा कि बड़े कौर उसके गले मे अटक जाते हैं, उसे छोटे छोटे कौर ही खिलाएगी।**नंद बाबा ने घोड़े को जोर से हांक लगाई, रथ धूल उड़ाते हुए बढ़ चला।**यशोदा वहीं जमीन पर बैठ गयी और फफक कर कहा- कृष्ण से भी कहियेगा कि मुझे स्मरण रखेगा।**उधर रथ में बैठे कृष्ण ने मन ही मन कहा- तुम्हें यह जगत सदैव स्मरण रखेगा मइया। तुम्हारे बाद मेरे जीवन मे जीवन बचता कहाँ है ?*

🙏 मां की ममता 🙏 By वनिता कासनियां पंजाब *ठाकुर जी का रुला देने वाला प्रसंग* *नंद बाबा चुपचाप रथ पर कान्हा के वस्त्राभूषणों की गठरी रख रहे थे। दूर ओसारे में मूर्ति की तरह शीश झुका कर खड़ी यशोदा को देख कर कहा- दुखी क्यों हो यशोदा, दूसरे की बस्तु पर अपना क्या अधिकार?* *यशोदा ने शीश उठा कर देखा नंद बाबा की ओर, उनकी आंखों में जल भर आया था। नंद निकट चले आये। यशोदा ने भारी स्वर से कहा- तो क्या कान्हा पर हमारा कोई अधिकार नहीं? ग्यारह वर्षों तक हम असत्य से ही लिपट कर जीते रहे?* *नंद ने कहा- अधिकार क्यों नहीं, कन्हैया कहीं भी रहे, पर रहेगा तो हमारा ही लल्ला न! पर उसपर हमसे ज्यादा देवकी वसुदेव का अधिकार है, और उन्हें अभी कन्हैया की आवश्यकता भी है।* *यशोदा ने फिर कहा- तो क्या मेरे ममत्व का कोई मोल नहीं?* *नंद बाबा ने थके हुए स्वर में कहा- ममत्व का तो सचमुच कोई मोल नहीं होता यशोदा। पर देखो तो, कान्हा ने इन ग्यारह वर्षों में हमें क्या नहीं दिया है।* *उम्र के उत्तरार्ध में जब हमने संतान की आशा छोड़ दी थी, तब वह हमारे आंगन में आया। तुम्हें नहीं लगता कि इन ग्यारह वर्षों में हमने जैसा सुखी ...

🙏 "धरती पर भगवान 🙏By वनिता कासनियां पंजाब 1. "अमरनाथजी" में शिवलिंग अपने आप बनता है।2. "माँ ज्वालामुखी" मेंहमेशा ज्वाला निकलती है।3. "मैहर माता मंदिर" में रात को आल्हा अब भी आते हैं।4. सीमा पर स्थित तनोट माता मंदिर में 3000 बम में से एक का भी ना फूटना।5. इतने बड़े हादसे के बाद भी "केदारनाथ मंदिर" का बाल ना बांका होना।6. पूरी दुनियां मैं आज भी सिर्फ "रामसेतु के पत्थर" पानी में तैरते हैं।7. "रामेश्वरम धाम" में सागर का कभी उफान न मारना।8. "पुरी के मंदिर"के ऊपर से किसी पक्षी या विमान का न निकलना।9. "पुरी मंदिर" की पताका हमेशा हवा के विपरीत दिशा में उड़ना।10. उज्जैन में "भैरोंनाथ" का मदिरा पीना।11. गंगा और नर्मदा माँ (नदी) के पानी का कभी खराब न होना।12, श्री राम नाम धन संग्रह बॆंक में संग्रहीत इकतालीस अरब राम नाम मंत्र पूरित ग्रंथों को (कागज होने पर भी) चूहों द्वारा नहीं काटा जान। जबकि अनेक चूहे अंदर घुमते रहते हॆं।13, चितोडगढ मे बाण माताजी के मंदिर मे आरती के समय त्रिशूल का हिलना।।

🙏 "धरती पर भगवान 🙏 By वनिता कासनियां पंजाब 1. "अमरनाथजी" में शिवलिंग अपने आप बनता है। 2. "माँ ज्वालामुखी" में हमेशा ज्वाला निकलती है। 3. "मैहर माता मंदिर" में रात को आल्हा अब भी आते हैं। 4. सीमा पर स्थित तनोट माता मंदिर में 3000 बम में से एक का भी ना फूटना। 5. इतने बड़े हादसे के बाद भी "केदारनाथ मंदिर" का बाल ना बांका होना। 6. पूरी दुनियां मैं आज भी सिर्फ "रामसेतु के पत्थर" पानी में तैरते हैं। 7. "रामेश्वरम धाम" में सागर का कभी उफान न मारना। 8. "पुरी के मंदिर"के ऊपर से किसी पक्षी या विमान का न निकलना। 9. "पुरी मंदिर" की पताका हमेशा हवा के विपरीत दिशा में उड़ना। 10. उज्जैन में "भैरोंनाथ" का मदिरा पीना। 11. गंगा और नर्मदा माँ (नदी) के पानी का कभी खराब न होना। 12, श्री राम नाम धन संग्रह बॆंक में संग्रहीत इकतालीस अरब राम नाम मंत्र पूरित ग्रंथों को (कागज होने पर भी) चूहों द्वारा नहीं काटा जान। जबकि अनेक चूहे अंदर घुमते रहते हॆं। 13, चितोडगढ मे बाण माताजी के मंदिर मे आरती के समय त्रिश...

🌹🙏🌹#ॐ _नमः_ #शिवाय 🌹🙏🌹#सावन_शिवरात्रि की_ #कथा By वनिता कासनियां पंजाब पूर्व काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। वो शिकार करके अपने परिवार का पालन पोषण किया करता था। उसपर एक साहूकार का कर्जा था जिसका ऋण चित्रभानु ने एक बार वक्त पर नहीं चुकाया। जिससे साहूकार उसपर क्रोधित हो गया और उसे शिव मठ में बंदी बना लिया। जिस दिन साहूकार ने शिकारी को बंदी बनाया वो दिन शिवरात्रि का था। शिव मठ में उस दिन शिकारी ने ध्यानमग्न होकर शिव से जुड़ी धार्मिक बातें सुनीं इसके साथ ही उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रमशाम होने पर साहूकार ने शिकारी चित्रभानु को अपने पास बुलाया और उससे ऋण को अदा करने पर बात की। जिसके बाद शिकारी ने अपना सारा ऋण साहूकार को लौटा दिया और अपने बंधक से मुक्त हो गया। इसके बाद वो जंगल में शिकार के लिए निकला लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण शिकारी भूख-प्यास से व्याकुल हो उठा । वो अपना शिकार खोजते हुए बहुत दूर निकल गया। शिकार ढूंढते ढूंढते रात हो गई। इस पर शिकारी चित्रभानु ने विचार किया कि उसे रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी। ये सोचकर वो एक तालाब के किनारे पहुंचा जहां उसे एक बिल्व वृक्ष नजर आया जिसपर चढ़कर वो रात बीतने का इंतजार करने लगा।बिल्व #वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग था, जो बिल्वपत्रों से ढका हुआ था। जिसका अंदाजा शिकारी को नहीं था। अपना पड़ाव बनाते वक्त उसने जो टहनियां तोड़ीं वे संयोग से #शिवलिंग पर जा गिरी। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची। तभी शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली- 'मैं गर्भिणी हूं और शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब तुम मुझे मार लेना।शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई। प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र फिर से टूटकर शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उसका अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया। कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली। जिसे देख शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया- 'हे शिकारी! मैं अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी। हिरणी की बात सुनकर शिकारी ने उसे भी जाने दिया।दो बार शिकार को खोकर शिकारी चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। इस बार भी धनुष से लगकर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे। इससे दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई। तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली- ‘हे शिकारी! मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।’शिकारी हंसा और बोला- ‘सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्याकुल हो रहे होंगे। जिसके उत्तर में हिरणी ने फिर कहा- जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी सता रही है। हे शिकारी! मेरा विश्वास करो, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।हिरणी का दुखभरा स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में और भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था।सुबह होने ही वाली थी कि एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला- ’ हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूं, यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।’मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा- ‘मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।’शिकारी ने उसे भी जाने दिया। इस प्रकार सुबह हो आई। उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई। पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला। थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया। उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया।अनजाने में ही क्यों न सही पर शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई। जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिवलोक ले गए। शिवजी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जानकर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए। राजा ने मासिक शिवरात्रि के इस व्रत का प्रचार प्रसार पूरे विश्व में फैलाया और लोगों को इसके महत्व के बारे में बताया।🌹🙏🌹#हर_हर_ #महादेव 🌹🙏🌹

🌹🙏🌹#ॐ _नमः_ #शिवाय 🌹🙏🌹#सावन_शिवरात्रि की_ #कथा  By वनिता कासनियां पंजाब पूर्व काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। वो शिकार करके अपने परिवार का पालन पोषण किया करता था। उसपर एक साहूकार का कर्जा था जिसका ऋण चित्रभानु ने एक बार वक्त पर नहीं चुकाया। जिससे साहूकार उसपर क्रोधित हो गया और उसे शिव मठ में बंदी बना लिया। जिस दिन साहूकार ने शिकारी को बंदी बनाया वो दिन शिवरात्रि का था। शिव मठ में उस दिन शिकारी ने ध्यानमग्न होकर शिव से जुड़ी धार्मिक बातें सुनीं इसके साथ ही उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम शाम होने पर साहूकार ने शिकारी चित्रभानु को अपने पास बुलाया और उससे ऋण को अदा करने पर बात की। जिसके बाद शिकारी ने अपना सारा ऋण साहूकार को लौटा दिया और अपने बंधक से मुक्त हो गया। इसके बाद वो जंगल में शिकार के लिए निकला लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण शिकारी भूख-प्यास से व्याकुल हो उठा । वो अपना शिकार खोजते हुए बहुत दूर निकल गया। शिकार ढूंढते ढूंढते रात हो गई। इस पर शिकारी चित्रभानु ने विचार किया कि उसे रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी। ये सोचकर ...

*सत्संग बड़ा है या तप* By वनिता कासनियां पंजाब 🤔 एक बार विश्वामित्र और वशिष्ठ जी में इस बात पर बहस हो गई कि सत्संग बड़ा है या तप। विश्वामित्र जी ने कठोर तपस्या करके ऋदिध्-सिध्दियों को प्राप्त किया था इसीलिए वे तप को बड़ा बता रहे थे। जबकि वशिष्ठ जी सत्संग को बड़ा बताते थे। वे इस बात का फैसला करवाने ब्रह्मा जी के पास चले गए। उनकी बात सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं सृष्टि की रचना करने में व्यस्त हूं। आप विष्णु जी के पास जाइये। विष्णु जी आपका फैसला अवश्य कर देगें। अब दोनों विष्णु जी के पास चले गए। विष्णु जी ने सोचा कि यदि मैं सत्संग को बड़ा बताता हूं तो विश्वामित्र जी नाराज होंगे और यदि तप को बड़ा बताता हूं तो वशिष्ठ जी के साथ अन्याय होगा। इसीलिए उन्होंने भी यह कहकर उन्हें टाल दिया कि मैं सृष्टि का पालन करने मैं व्यस्त हूं। आप शंकर जी के पास चले जाइये अब दोनों शंकर जी के पास पहुंचे शंकर जी ने उनसे कहा कि यह मेरे वश की बात नहीं है। इसका फैसला तो शेषनाग जी कर सकते हैं। अब दोनों शेषनाग जी के पास गए। शेषनाग ने उनसे पुछा-कहो ऋषियो कैसे आना हुआ।वशिष्ठ जी ने बताया कि हमारा फैसला किजिये कि तप बड़ा है या सत्संग बड़ा है। विश्वामित्र जी कहते हैं कि तप बड़ा है और मैं सत्संग को बड़ा बताता हूं शेषनाग जी ने कहा मैं अपने सिर पर पृथ्वी का भार उठाए हूं यदि आप में से कोई थोड़ी देर के लिए पृथ्वी के भार को उठा ले तो मैं आपका फैसला कर दूंगा। तप में अहंकार होता है विश्वामित्र जी तपस्वी थे। उन्होंने तुरन्त अहंकार में भरकर शेषनाग जी से कहा कि पृथ्वी को आप मुझे दिजिए विश्वामित्र ने पृथ्वी अपने सिर पर ले ली अब पृथ्वी नीचे की और चलने लगी शेषनाग जी बोले-विश्वामित्र जी रोको ! पृथ्वी रसातल को जा रही है विश्वामित्र ने कहा-मैं अपना सारा तप देता हूं पृथ्वी रूक जा परन्तु पृथ्वी नहीं रूकी। यह देखकर वशिष्ठ जी ने कहा -मैं आधी घड़ी का सत्संग देता हूं पृथ्वी माता रूक जा । पृथ्वी वहीं रूक गई। अब शेषनाग जी ने पृथ्वी को अपने सिर पर ले लिया और उनको कहने लगे कि अब आप जाइये। विश्वामित्र जी कहने लगे -हमारी बात का फैसला तो नहीं हुआ। शेषनाग जी बोले -विश्वामित्र जी फैसला तो हो चुका है।आपके पूरे जीवन का तप देने से भी पृथ्वी नहीं रूकी और वशिष्ठ जी के आधी घड़ी के सत्संग से ही पृथ्वी अपनी जगह पर रूक गई। फैसला तो हो गया तप से सत्संग बड़ा होता है। इसीलिए हमे सत्संग सुनना चाहिए और कभी भी जब भी कही आस पास सत्संग हो उसे सुनना उसपर अमल करना चाहिए ।*सत्संग की आधी घड़ी तप के वर्ष हजार। तो भी नहीं बराबरी सन्तन कियो विचार।।* 🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏 🙏🌹🌹🙏

*सत्संग बड़ा है या तप* By वनिता कासनियां पंजाब 🤔   एक बार विश्वामित्र और वशिष्ठ जी में इस बात पर बहस हो गई कि सत्संग बड़ा है या तप। विश्वामित्र जी ने कठोर तपस्या करके ऋदिध्-सिध्दियों को प्राप्त किया था इसीलिए वे तप को बड़ा बता रहे थे। जबकि वशिष्ठ जी सत्संग को बड़ा बताते थे। वे इस बात का फैसला करवाने ब्रह्मा जी के पास चले गए। उनकी बात सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं सृष्टि की रचना करने में व्यस्त हूं। आप विष्णु जी के पास जाइये।                            विष्णु जी आपका फैसला अवश्य कर देगें। अब दोनों विष्णु जी के पास चले गए। विष्णु जी ने सोचा कि यदि मैं सत्संग को बड़ा बताता हूं तो विश्वामित्र जी नाराज होंगे और यदि तप को बड़ा बताता हूं तो वशिष्ठ जी के साथ अन्याय होगा। इसीलिए उन्होंने भी यह कहकर उन्हें टाल दिया कि मैं सृष्टि का पालन करने मैं व्यस्त हूं।  आप शंकर जी के पास चले जाइये अब दोनों शंकर जी के पास पहुंचे शंकर जी ने उनसे कहा कि यह मेरे वश की बात नहीं है। इसका फैसला तो शेषनाग जी कर सकते हैं।  ...

कैसे हुई कलियुग की शुरुआत By वनिता कासनियां पंजाब पुराणों में चार युगों का वर्णन मिलता है सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग । कलियुग को एक श्राप कहा जाता है । पर क्या आपको पता है कि इस पृथ्वी पर कलयुग कैसे आया और कैसे हुई कलयुग की शुरुआत । ,चलिए हम आपको बताते हैं । स्वागत है दोस्तो आप सभी का आपकी पसंदीदा वेबसाइट बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम पर एक बार फिर । क्या आपने कभी इस बात की ओर ध्यान दिया है कि ऐसे क्या कारण रहे होंगे जिनके चलते कलयुग को धरती पर आना पड़ा ।महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने अपनी पुस्तक आर्यभटीय में इस बात का उल्लेख किया है कि जब वे तेईस वर्ष के थे तब कलयुग का छत्तीस सौ वर्ष चल रहा था । आंकड़ों के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म चार सौ छिहत्तर में हुआ था । गणना की जाए तो कलयुग का आरंभ इकत्तीस सौ दो ईसा पूर्व हो चुका था ।,,राजा परीक्षित द्वारा कलयुग को दंडजब धर्मराज युधिष्ठिर अपना पूरा राजपाठ परीक्षित को सौंपकर अन्य पांडवों और द्रोपदी सहित महाप्रयाण हेतु हिमालय की और निकल गए थे । उन दिनों स्वयं धर्म बैल का रूप लेकर गाय के रूप में बैठी पृथ्वी देवी से सरस्वती नदी के किनारे मिले। गाय रूपी पृथ्वी के नयन आंसुओं से भरे हुए थे । उनकी आँखों से लगातार अश्रु बह रहे थे ।पृथ्वी को दुखी देख कर धर्म ने उनसे उनकी परेशानी का कारण पूछा । धर्म ने कहा देवी तुम ये देख कर तो नहीं रो रही हो कि मेरा बस एक ही पैर है या तुम इस बात से दुखी हो कि अब अधर्म बढ़ेगा? इस सवाल का जवाब देते हुए पृथ्वी देवी बोली हे धर्म तुम तो सब कुछ जानते हो ऐसे में मेरे दुखों का कारण पूछने का क्या लाभ ।सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, असीम सुंदरता, त्याग, संपत्ति, ज्ञान, बल, प्रसिद्धि, शास्त्र, विचार, ज्ञान, वैराग्य, ऐश्वर्य, निर्भीकता, कोमलता, धैर्य और भी अनंत गुणों के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण के स्वधाम चले जाने की वजह से कलयुग ने मुझ पर कब्जा कर लिया है । पहले भगवान कृष्ण के चरण मुझ पर पड़ते थे जिसकी वजह से मैं खुद को सौभाग्यशाली मानती थी परंतु अब ऐसा नहीं है ।अब मेरा सौभाग्य समाप्त हो चुका है । धर्म और पृथ्वी आपस में बात ही कर रहे थे कि इतने में असुर रूपी कलयुग वहाँ आ पहुँचा और बैल और गाय रूपी धर्म और पृथ्वी को मारने लगा । राजा परीक्षित वहाँ से गुजर रहे थे । जब उन्होंने ये दृश्य अपनी आँखों से देखा तो कलयुग पर बहुत क्रोधित हुए ।राजा परीक्षित की कलियुग से मुलाकातराजा परीक्षित ने कलयुग से कहा दुष्ट पापी तू कौन है इस गाय और बैल को क्यों सता रहा है? तू महान अपराधी है । तेरा अपराध क्षमा योग्य नहीं है इसलिए तेरा मरण निश्चित है । राजा परीक्षित ने बैल के रूप में धर्म और गाय के रूप में पृथ्वी देवी को पहचान लिया।राजा परीक्षित उनसे कहते हैं कि धर्म सतयुग में आपके तप, पवित्रता, दया और सत्य ये चार चरण थे । त्रेता में तीन चरण ही रह गए । द्वापर में दो ही रह गए और अब इस दुष्ट कलयुग के कारण आपका एक ही चरण रह गया है ।पृथ्वी देवी भी इस बात से दुखी हैं। इतना कहते ही राजा परीक्षित ने अपनी तलवार निकाली और कलयुग को मारने के लिए आगे बढ़े। राजा परीक्षित का क्रोध देखकर कलयुग थरथर कांपने लगा । कलयुग भयभीत होकर अपने राजसी वेश को उतारकर राजा परीक्षित के चरणों में गिर गया और क्षमा याचना करने लगा ।राजा परीक्षित ने दी कलयुग को शरणराजा परीक्षित ने भी शरण में आए हुए कलयुग को मारना उचित ना समझा और उससे कहा, कलयुग मेरे शरण में आ गया है इसलिए मैं तुझे जीवन दान दे रहा हूँ । किन्तु अधर्म, पाप, झूठ, चोरी, कपट, दरिद्रता आदि अनेक उपद्रवों का मूल कारण केवल तू ही है तो मेरे राज्य से अभी निकल जाओ और फिर कभी लौटकर मत आना ।परीक्षित की बात को सुनकर कलयुग ने कहा कि पूरी पृथ्वी पर आपका निवास है । पृथ्वी पर ऐसा कोई भी स्थान नहीं है यहाँ आपका राज्य ना हो। ऐसे में मुझे रहने के लिए स्थान प्रदान करें । कलयुग के यह कहने पर राजा परीक्षित ने कहा कि जहाँ भी जुआ खेला जाता हो , शराब का सेवन होता हो , अवैध शारीरिक सम्बन्ध और मांसाहार होता हो । तू इन चार स्थानों पर रह सकता है ।परंतु इस पर कलयुग बोला हे राजन! ये चार स्थान मेरे रहने के लिए अपर्याप्त है । मुझे अन्य जगह भी प्रदान कीजिये क्यूंकि आपके पवित्र राज्य में कोई भी ऐसा स्थान नहीं है जहां ये चीजें होती हों। इस मांग पर राजा परीक्षित ने उसे स्वर्ण के रूप में पांचवां स्थान प्रदान किया ।संछिप्त विवरण कि कलियुग के आने के बाद क्या होगा।कलयुग में राजा प्रजा कि रक्षा करने कि जगह उन शोषण करेंगे और मनमाने ढंग से शासन करेंगे । मन चाहे ढंग से उन पर लगान थोपेंगे । शासक अपने राज्य में अध्यात्म की जगह भय का प्रसार करेंगे । बडी संख्या में पलायन शुरू हो जाएगा ।लोग सस्ते खाद्य पदार्थ और सुविधाओं की तलाश में अपने घरों को छोड़कर जाने के लिए मजबूर होंगे । धर्म को नजर अंदाज किया जाएगा और लालच, सत्ता, पैसा सभी के मस्तिष्क में प्रबल रूप से विद्यमान रहेंगे ।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रमलोग बिना किसी पश्चाताप के अपराधी बनकर लोगों की हत्या भी करेंगे । संभोग ही जिंदगी की सबसे बड़ी जरूरत बन जाएगी । लोग बहुत आसानी से कसम खाएंगे और उसे तोड़ भी देंगे । लोग मदिरा और अन्य नशीले पदार्थों की चपेट में आ जायेंगे।गुरुओं का सम्मान करने की परंपरा भी समाप्त हो जाएगी । ब्राह्मण ज्ञानी नहीं रहेंगे, क्षत्रियों का साहस खो जाएगा और वैश्य अपने व्यवसाय में ईमानदार नहीं रह पाएंगे ।धन्यवादआज ये सभी चीजें दोस्तो हमारी रोजमर्रा के जीवन की साधारण सी बातें लगती है। कलयुग का अंत कैसे होगा ये हम आपको एक दूसरी पोस्ट में बताएंगे। उम्मीद करते हैं कि कलयुग की शुरुआत की ये कहानी आपको बेहद पसंद आयी होगी ।जुड़े रहें बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम के साथ ऐसे ही और रोचक प्रसंग और कहानियों के लिए। हमसे जुड़ने के लिए हमारा व्हाट्सप्प ग्रुप ज्वाइन करें। ग्रुप ज्वाइन करने के लिए यहाँ क्लिक करें –बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम Whatsapp Group। अगर आपको ये कहानी पसंद आयी हो तो नीचे व्हाट्सप्प का हरा वाला बटन दबाकर इसे शेयर जरूर करें। आपका बहुत बहुत शुक्रिया!यह भी पड़ें – गरुण पुराण के अनुसार किन बातों का ध्यान रखेंपोस्ट को व्हाट्सप्प पर शेयर करें,वनिता कासनियां पंजाब

Skip to conte कैसे हुई कलियुग की शुरुआत July 27, 2022   b पुराणों में चार युगों का वर्णन मिलता है सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग । कलियुग को एक श्राप कहा जाता है । पर क्या आपको पता है कि इस पृथ्वी पर कलयुग कैसे आया और कैसे हुई कलयुग की शुरुआत । चलिए हम आपको बताते हैं । स्वागत है दोस्तो आप सभी का आपकी पसंदीदा वेबसाइट  बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम पर एक बार फिर । क्या आपने कभी इस बात की ओर ध्यान दिया है कि ऐसे क्या कारण रहे होंगे जिनके चलते कलयुग को धरती पर आना पड़ा । महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने अपनी पुस्तक आर्यभटीय में इस बात का उल्लेख किया है कि जब वे तेईस वर्ष के थे तब कलयुग का छत्तीस सौ वर्ष चल रहा था । आंकड़ों के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म चार सौ छिहत्तर में हुआ था । गणना की जाए तो कलयुग का आरंभ इकत्तीस सौ दो ईसा पूर्व हो चुका था । ,, राजा परीक्षित द्वारा कलयुग को दंड जब धर्मराज युधिष्ठिर अपना पूरा राजपाठ परीक्षित को सौंपकर अन्य पांडवों और द्रोपदी सहित महाप्रयाण हेतु हिमालय की और निकल गए थे । उन दिनों स्वयं धर्म बैल का रूप लेकर गाय के रूप में बैठी पृथ्वी देवी से सरस्वती नदी ...

बुध ग्रह को मजबूत करने के उपाय क्या हैं? By वनिता कासनियां पंजाब बुध के लिए सरल उपायबुध बुद्धि का प्रमुख ग्रह है, मजाकिया, गणनात्मक, तर्कसंगत, व्यावहारिक, स्ट्रीट स्मार्ट होने के कारण, जीवन की विषम परिस्थितियों में कौशल या चाल का उपयोग कैसे किया जाता है। इसलिए जब बुध प्राकृतिक तीसरे और छठे भाव का स्वामी पीड़ित या दुर्बल या कमजोर हो तो यह कर सकता है भाषण, संचार में परेशानी दें। व्यक्ति गणित या अंकगणित के खेल में कमजोर हो सकता है, प्रबंधन कौशल की कमी, ऋण के साथ परेशानी, तर्कहीन अतार्किक विचार, नर्वस ब्रेकडाउन हो सकता है। यदि आपको स्थिर नौकरी, अच्छा प्रदर्शन करने की आवश्यकता है तो आपको अच्छे बुध की आवश्यकता है। वायु राशि में पीड़ित हो, मंत्र का जाप करना, जल राशि में हो तो दान और अग्नि राशि में हो तो हवन और पूजा करना, लेकिन इस व्यस्त जीवन शैली में अधिकांश लोगों के लिए यह सब संभव नहीं है। नीचे कुछ सामान्य उपायों की सूची दी गई है 6 महीने तक इनका पालन करने से बुध की नकारात्मकता से बाहर निकलने में मदद मिलती है।युवाओं और युवा पीढ़ी को हमेशा उत्साह दें।छात्रों को उनके गृहकार्य में या उनकी अध्ययन सामग्री को समझने में मदद करते रहें।किशोरों के प्रति बहुत कठोर न हों।बैंकर, कैशियर, कर अधिकारियों, या जो कभी भी पैसे के संरक्षक हैं, उन्हें धोखा न दें।बुध संचार का ग्रह है इसलिए फालतू बातें न करें और न ही अपने अतार्किक सिद्धांतों को दूसरों पर थोपें।यदि बुध आपके 8/12वें भाव का स्वामी है तो हरे रंग के अधिक प्रयोग से बचें।छात्रों को अध्ययन सामग्री जैसे पेन, पेपर, कंप्यूटर आदि दान करने से आपका बुध मुस्कुरा सकता है।कुछ लेखन का अभ्यास करें, इसके लिए आपको एक पुरस्कार विजेता लेखक होने की आवश्यकता नहीं है, बस जो भी आपके दिमाग में आता है उसे लिखते रहें या दैनिक डेयरी लेखन बनाए रखें।शैक्षणिक संस्थाओं के लिए दान-पुण्य करते रहें।आखिरी लेकिन सबसे अच्छी, अगर बुध की महादशा या अंतर्दशा चल रही है तो सुनिश्चित करें कि आप हर दिन एक घंटे के लिए कुछ किताबें पढ़ रहे हैं। संक्षेप में एक कास्ट रीडर बनें।

बुध ग्रह को मजबूत करने के उपाय क्या हैं? By वनिता कासनियां पंजाब बुध के लिए सरल उपाय बुध बुद्धि का प्रमुख ग्रह है, मजाकिया, गणनात्मक, तर्कसंगत, व्यावहारिक, स्ट्रीट स्मार्ट होने के कारण, जीवन की विषम परिस्थितियों में कौशल या चाल का उपयोग कैसे किया जाता है। इसलिए जब बुध प्राकृतिक तीसरे और छठे भाव का स्वामी पीड़ित या दुर्बल या कमजोर हो तो यह कर सकता है भाषण, संचार में परेशानी दें। व्यक्ति गणित या अंकगणित के खेल में कमजोर हो सकता है, प्रबंधन कौशल की कमी, ऋण के साथ परेशानी, तर्कहीन अतार्किक विचार, नर्वस ब्रेकडाउन हो सकता है। यदि आपको स्थिर नौकरी, अच्छा प्रदर्शन करने की आवश्यकता है तो आपको अच्छे बुध की आवश्यकता है। वायु राशि में पीड़ित हो, मंत्र का जाप करना, जल राशि में हो तो दान और अग्नि राशि में हो तो हवन और पूजा करना, लेकिन इस व्यस्त जीवन शैली में अधिकांश लोगों के लिए यह सब संभव नहीं है। नीचे कुछ सामान्य उपायों की सूची दी गई है 6 महीने तक इनका पालन करने से बुध की नकारात्मकता से बाहर निकलने में मदद मिलती है। युवाओं और युवा पीढ़ी को हमेशा उत्साह दें। छात्रों को उनके गृहकार्य में या उनकी अध्...