हम चैन से सो पाए इसलिए ही वो सो गया, वो भारतीय फौजी ही था जो आज शहीद हो गया. जय हिन्द Army हमारी दिवाली में रोशनी इसलिए हैं क्योंकि सरहद पर अँधेरे में कोई खड़ा हैं. जय हिन्द एक सैनिक ने क्या खूब कहा है. किसी गजरे की खुशबु को महकता छोड़ आया हूँ, मेरी नन्ही सी चिड़िया को चहकता छोड़ आया हूँ, मुझे छाती से अपनी तू लगा लेना ऐ भारत माँ, मैं अपनी माँ की बाहों को तरसता छोड़ आया हूँ। जय हिन्द जहाँ हम और तुम हिन्दू-मुसलमान के फर्क में लड़ रहे हैं, कुछ लोग हम दोनों के खातिर सरहद की बर्फ में मर रहे हैं. नींद उड़ गया यह सोच कर, हमने क्या किया देश के लिए, आज फिर सरहद पर बहा हैं खून मेरी नींद के लिए. जय हिन्द जहर पिलाकर मजहब का, इन कश्मीरी परवानों को, भय और लालच दिखलाकर तुम भेज रहे नादानों को, खुले प्रशिक्षण, खुले शस्त्र है खुली हुई शैतानी है, सारी दुनिया जान चुकी ये हरकत पाकिस्तानी है, जय हिन्द फ़ौजी की मौत पर परिवार को दुःख कम और गर्व ज्यादा होता हैं, ऐसे सपूतो को जन्म देकर माँ का कोख भी धन्य हो जाता हैं. जिसकी वजह से पूरा हिन्दुस्तान चैन से सोता हैं, कड़ी ठंड, गर्मी और बरसात में अपना धैर्य न खोता ह...
〰️〰️〰️➖‼️➖〰️〰️〰️#मन_को_सदा_सद्विचारों_में_ #संलग्न_रखेंBy वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️〰️➖‼️➖〰️〰️〰️*👉मनुष्य जब तक जीवित रहता है सर्वदा कार्य में संलग्न रहता है, चाहे कार्य शुभ हो या अशुभ।* कुछ न कुछ कार्य करता ही रहता है और अपने कर्मों के फलस्वरूप दुःख सुख पाता रहता है, *बुरे कर्मों से दुःख एवं शुभ कर्मों से सुख।**जब हम ईश्वर की आज्ञानुसार कर्म करते हैं तो हमें किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है क्योंकि वे कार्य शुभ होते हैं परन्तु जब हम उनकी आज्ञा के विरुद्ध कार्य करते हैं तभी दुःखी होते हैं, दुःख से छुटकारा पाने के लिये हमें सदैव यह प्रयत्न करना चाहिए कि हम बुराइयों से बचें।*ईश्वर आज्ञा देता है कि *“हे मनुष्यों! इस संसार में "सत्कर्मों" को करते हुए सौ वर्ष तक जीने की इच्छा करो। "सत्कर्म" में कभी आलसी और प्रमादी मत बनो, जो तुम उत्तम कर्म करोगे तो तुम्हें इस उत्तम कर्म से कभी भी दुःख नहीं प्राप्त हो सकता है। अतः शुभ कार्य से कभी वंचित न रहो।”*हम लोगों का सबसे बढ़कर सही कर्त्तव्य है कि *हम मन को किसी क्षण कुविचारों के लिए अवकाश न दें क्योंकि जिस समय हमें शुभ कर्मों से अवकाश मिलेगा उसी समय हम विनाशकारी पथ की ओर अग्रसर होंगे।*मनुष्य का जीवन इतना बहुमूल्य है कि बार-बार नहीं मिलता, *यदि इस मनुष्य जीवन को पाकर हम ईश्वर की आज्ञा न मानकर व्यर्थ कर्मों में अपने समय को बरबाद कर रहे हैं तो इससे बढ़कर और मूर्खता क्या है?* इससे तो पशु ही श्रेष्ठ है जिनसे हमें परोपकार की तो शिक्षा मिलती है।हमारे जीवन का उद्देश्य सर्वदा अपनी तथा दूसरों की भलाई करना है। क्योंकि जो संकुचित स्वार्थ से ऊंचे उठकर उच्च उद्देश्यों के लिए उदार दृष्टि से कार्य करते हैं वे ही ईश्वरीय ज्ञान को पाते हैं और वही संसार के बुरे कर्मों से बचकर शुभ कर्मों को करते हुए आनन्द को उपलब्ध करते हैं। *जो प्रत्येक जीव के दुःख को अपना दुःख समझता है तथा प्रत्येक जीव में आत्मभाव रखता है अथवा परमपिता परमात्मा को सदैव अपने निकट समझता है वह कभी पाप कर्म नहीं करता जब पाप कर्म नहीं तो उसका फल दुःख भी नहीं।* इसलिए हमें सदा ईश्वर परायण होना चाहिए और सद्विचारों में निमग्न रहना चाहिए जिससे मानव जीवन का महान लाभ उपलब्ध किया जा सके।〰️〰️〰️➖💦➖〰️〰️〰️ *💦#जय_ #श्रीराम 💦* 🙏 #वाहे_ #गुरुजी 🙏 #परम_दयालु_ #परमेश्वर_कि_जय#ईश्वर_परमात्मा_ #मालिक_सृष्टि_रचयिता_को_ #कोटी_कोटी_नमन् 👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏〰️〰️〰️➖💦➖〰️〰️〰️
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#मन_को_सदा_सद्विचारों_में_ #संलग्न_रखें
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*👉मनुष्य जब तक जीवित रहता है सर्वदा कार्य में संलग्न रहता है, चाहे कार्य शुभ हो या अशुभ।* कुछ न कुछ कार्य करता ही रहता है और अपने कर्मों के फलस्वरूप दुःख सुख पाता रहता है, *बुरे कर्मों से दुःख एवं शुभ कर्मों से सुख।*
*जब हम ईश्वर की आज्ञानुसार कर्म करते हैं तो हमें किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है क्योंकि वे कार्य शुभ होते हैं परन्तु जब हम उनकी आज्ञा के विरुद्ध कार्य करते हैं तभी दुःखी होते हैं, दुःख से छुटकारा पाने के लिये हमें सदैव यह प्रयत्न करना चाहिए कि हम बुराइयों से बचें।*
ईश्वर आज्ञा देता है कि *“हे मनुष्यों! इस संसार में "सत्कर्मों" को करते हुए सौ वर्ष तक जीने की इच्छा करो। "सत्कर्म" में कभी आलसी और प्रमादी मत बनो, जो तुम उत्तम कर्म करोगे तो तुम्हें इस उत्तम कर्म से कभी भी दुःख नहीं प्राप्त हो सकता है। अतः शुभ कार्य से कभी वंचित न रहो।”*
हम लोगों का सबसे बढ़कर सही कर्त्तव्य है कि *हम मन को किसी क्षण कुविचारों के लिए अवकाश न दें क्योंकि जिस समय हमें शुभ कर्मों से अवकाश मिलेगा उसी समय हम विनाशकारी पथ की ओर अग्रसर होंगे।*
मनुष्य का जीवन इतना बहुमूल्य है कि बार-बार नहीं मिलता, *यदि इस मनुष्य जीवन को पाकर हम ईश्वर की आज्ञा न मानकर व्यर्थ कर्मों में अपने समय को बरबाद कर रहे हैं तो इससे बढ़कर और मूर्खता क्या है?* इससे तो पशु ही श्रेष्ठ है जिनसे हमें परोपकार की तो शिक्षा मिलती है।
हमारे जीवन का उद्देश्य सर्वदा अपनी तथा दूसरों की भलाई करना है। क्योंकि जो संकुचित स्वार्थ से ऊंचे उठकर उच्च उद्देश्यों के लिए उदार दृष्टि से कार्य करते हैं वे ही ईश्वरीय ज्ञान को पाते हैं और वही संसार के बुरे कर्मों से बचकर शुभ कर्मों को करते हुए आनन्द को उपलब्ध करते हैं। *जो प्रत्येक जीव के दुःख को अपना दुःख समझता है तथा प्रत्येक जीव में आत्मभाव रखता है अथवा परमपिता परमात्मा को सदैव अपने निकट समझता है वह कभी पाप कर्म नहीं करता जब पाप कर्म नहीं तो उसका फल दुःख भी नहीं।* इसलिए हमें सदा ईश्वर परायण होना चाहिए और सद्विचारों में निमग्न रहना चाहिए जिससे मानव जीवन का महान लाभ उपलब्ध किया जा सके।
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*💦#जय_ #श्रीराम 💦*
🙏 #वाहे_ #गुरुजी 🙏
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